वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने और पुराने तथा दोषपूर्ण वाहनों को सड़क से हटाने के उद्देश्य से प्रस्तावित वाहन कबाड़ नीति (वेहिकल स्क्रैपेज पॉलिसी) की तमाम खूबियां सरकार गिना रही है. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी नई वाहन कबाड़ नीति को ऑटोमोबाइल क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण सुधार करार देते हैं. वे कहते हैं, ''यह हर किसी के लिए फायदे का सौदा है.
इससे सड़क सुरक्षा में सुधार होगा, वायु प्रदूषण में कमी आएगी और ईंधन की खपत और तेल आयात भी कम होगा. ऑटो, स्टील और इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों को 30 से 40 फीसद सस्ते कच्चे माल की उपलब्धता होगी.'' अनुमान यह भी है कि अगले पांच वर्षों में देश के ऑटोमोबाइल क्षेत्र का आकार मौजूदा 4.50 लाख करोड़ रु. से बढ़कर 10 लाख करोड़ रु. हो जाएगा. 10,000 करोड़ रु. के नए निवेश और रोजगार के 35,000 नए अवसर भी इससे पैदा होने की उम्मीद है. लेकिन इन तमाम अच्छाइयों के बाद भी कई ऐसे पहलू हैं जिनकी वजह से सड़क परिवहन से जुड़े कारोबारी इस नीति को खूबियों से ज्यादा खामियों वाला बता रहे हैं.
ये हैं परेशानियां
इंडियन फाउंडेशन ऑफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग (आइएफटीआरटी) के सीनियर फेलो एस.पी. सिंह सरकारी आंकड़ों पर सवाल खड़ा करते हैं. वे कहते हैं, ''पुराने वाहनों के जो आंकड़े सरकार ने रखे हैं, असलियत से बहुत ज्यादा है.'' एक से डेढ़ लाख गाड़ियां हर साल वैसे ही कबाड़ में चली जाती हैं. उनका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. वे कहते हैं, ''इसके अर्थव्यवस्था पर बुरे प्रभाव पड़ेंगे.''
प्रदूषण का मुद्दा देश के 20-22 जिलों का है. कुछ छोटे जिलों को भी शामिल कर लें तो बमुश्किल 70 जिले होंगे. ऐसे में, एस.पी. सिंह का सवाल है कि सरकार देश के 600 से ज्यादा जिलों में एक-सी नीति कैसे लागू कर सकती है? उनकी दलील है कि मान लीजिए उत्तर प्रदेश के बिजनौर में बाप-बेटे मिलकर 80-100 किलोमीटर के दायरे में कोई पुराना ट्रक चला रहे हैं. अब आप उनका पुराना ट्रक बिकवाकर उन्हें 20-22 लाख रु. की गाड़ी पर 5 फीसद छूट दिलवा भी देंगे तो क्या वे नया ट्रक खरीद पाएंग? यह नीति ऐसे लोगों को ट्रक मालिक से ट्रक ड्राइवर बना देगी.
सरकार को लगता है कि 5 फीसद छूट ट्रक ड्राइवरों को खरीद के लिए आकर्षित करेगी. लेकिन वाहन निर्माता 15 से 20 फीसद की छूट दे रहे, जब उससे बिक्री नहीं बढ़ रही तो 5 फीसद डिस्काउंट से क्या हो जाएगा?
बस ऑपरेटर्स कन्फेडरेशन ऑफ इंडिया (बीओसीआइ) के अध्यक्ष प्रसन्ना पटवर्धन कहते हैं, ''स्क्रैप पॉलिसी का आधार किसी वाहन का उपयोग या उसकी फिटनेस होना चाहिए, न कि उसकी उम्र.'' स्कूल बसों का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि महीने में एक स्कूल बस औसतन 1000 किलोमीटर चलती है. इन बसों की तुलना क्या रोजाना 700-800 किलोमीटर चलने वाली बसों से की जा सकती है? दूसरे, बसों में बहुत से ऐसे उपकरण होते हैं, जो समय-समय पर बदले जाते हैं. अगर प्रदूषण का मुख्य कारण इंजन है तो उसे बदलिए या उसमें कुछ बदलाव कीजिए. पटवर्धन कहते हैं, ''अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति में ऐसी नीति लाना यह दर्शाता है कि सरकार को उद्योग की फिक्र नहीं, केवल टैक्स बढ़ाने की चिंता है.''
राह नहीं आसान
ब्रोकिंग फर्म शेयरखान की ओर से जारी रिपोर्ट, ''ऑटोमोबाइल्स मेकिंग वे फॉर न्यू'' के मुताबिक, कुछ राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर का खतरा बढ़ रहा है. इसकी वजह से आंशिक लॉकडाउन और आपूर्ति शृंखला प्रभावित होने का डर है. यह प्रस्तावित कबाड़ नीति के अमल में आने में देरी का कारण बन सकता है. इसके अलावा इस नीति की सफलता बुनियादी ढांचे के निर्माण पर टिकी होगी.
वित्तीय सेवाएं देने वाली फर्म जेफरीज की रिपोर्ट के मुताबिक, ''सरकार की स्क्रैप पॉलिसी लोगों को पुराने वाहन खत्म करके नए खरीदने के लिए बहुत प्रोत्साहित करेगी, ऐसा नहीं लगता. इसकी मुख्य वजह प्रोत्साहन राशि का अपर्याप्त होना है.'' पॉलिसी के तहत अगर कोई वाहन मालिक यह विकल्प चुनता है तो उसे उसकी कार का मूल्य शोरूम वैल्यू का 4 से 6 फीसद से ज्यादा नहीं मिलेगा. वहीं नई कार खरीदने पर उसे सिर्फ 5 फीसद की छूट प्रस्तावित है. रोड टैक्स में 25 फीसद छूट देने का प्रावधान भी किया गया है.
कार निर्माता खुश
काम निर्माता कंपनियों के संगठन द सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चर्स (सियाम) ने देश में पहली बार स्क्रैप पॉलिसी बनने का स्वागत किया है. संगठन का कहना है कि पर्यावरण के लाभ और सड़क सुरक्षा के नजरिए से अनफिट वाहनों का सड़क से हटना जरूरी था. अब यह नीति अच्छे से अमल में लाई जा सके, इसके लिए देश में मजबूत बुनियादी ढांचे का होना जरूरी है. इस पर ऑटो कंपनियां सरकार के साथ मिलकर काम करेंगी.
रेटिंग एजेंसी इक्रा के अनुमान के मुताबिक, इस नीति की वजह से वित्त वर्ष 2024 तक 3,00,000 अतिरिक्त कारें बिकेंगी. एजेंसी के अनुमान के मुताबिक, मार्च 2021 तक देश में कुल 4 करोड़ 80 लाख पैसेंजर वेहिकल हैं, इनमें करीब 3 फीसद (करीब 10 लाख) 20 साल से ज्यादा पुरानी हैं.
यह है कार्य योजना
नई प्रस्तावित नीति में अहम भूमिका ऑटोमेटेड फिटनेस सेंटर (एएफसी) की होगी. ये एएफसी सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी मॉडल) के तहत राज्य सरकारों, निजी क्षेत्र और वाहन कंपनियों की मदद से स्थापित किए जाएंगे. एएफसी ही निजी और वाणिज्यिक वाहनों को केंद्रीय मोटर वाहन नियम 1989 के मापदंडों के आधार पर फिटनेस सर्टिफिकेट देंगे.
20 साल से पुराने निजी वाहनों और 15 साल से पुराने वाणिज्यिक वाहनों को फिटनेस टेस्ट कराना अनिवार्य होगा. अगर ये वाहन फिटनेस टेस्ट पास नहीं कर पाते हैं तो इन्हें एंड ऑफ लाइफ वेहिकल श्रेणी में डाल दिया जाएगा. मौजूदा व्यवस्था में किसी निजी वाहन (कार या दुपहिया) का पंजीकरण 15 साल के लिए वैध होता है. इसके बाद वाहन मालिक को इसे आरटीओ दफ्तर ले जाकर फिटनेस टेस्ट करवाना पड़ता है. यह फिटनेस टेस्ट अभी मैनुअल प्रक्रिया के तहत किया जाता है. नई नीति के बाद ऑटोमेटेड सेंटर पर फिटनेस कंप्यूटर जांचेगा. अगर हेडलाइट भी इधर-उधर हुई तो वाहन अनफिट करार दिया जाएगा.
अगला पड़ाव वाहनों को कबाड़ में बेचना होगा. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने पंजीकृत वाहन स्क्रैपिंग सुविधा (आरवीएसएफ) स्थापित करने के लिए मसौदा नियम बनाए हैं. इन केंद्रों पर प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा, जिसके सहारे नए वाहन की खरीद पर कुछ फायदे दिए जाएंगे.
राष्ट्रीय वाहन कबाड़ नीतिः किसके फायदे का सौदा - Aaj Tak
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