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Wednesday, October 13, 2021

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की टिप्पणी, मोटर वाहन अधिनियम एक कल्याणकारी कानून, उदार दृष्टिकोण जरूरी - दैनिक जागरण

चंडीगढ़, [दयानंद शर्मा]। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का कहना है कि मोटर वाहन अधिनियम एक कल्याणकारी कानून है इसका मुख्य उद्देश्य पीडि़त व उसके परिवार को सहायता उपलब्ध करवाना है, इसलिए मोटर वाहन अधिनियम के प्रकरणों मे कानूनी अड़चनों को दूर रखते हुए सामान्य व आसान तरीके से निस्तारण होना चाहिए ताकि जरूरतमंद व्यक्ति को समय पर उचित न्याय मिल सके।

हाई कोर्ट के जस्टिस एचएस मदान ने पलवल की एक अदालत द्वारा वाहन दुर्घटना में मौत के लिए दिए गए मुआवजे के खिलाफ मेसर्स रायल सुंदरम एलायंस इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए ये टिप्पणी की।

पलवल के ग्राम भिदुकी निवासी 26 वर्षीय बंसीलाल की 10 अक्टूबर 2015 को वाहन की टक्कर से मौत हो गई थी। कार गजराज सिंह चला रहा था। आरोप था कि गजराज के तेज और लापरवाही से वाहन चलाने से दुर्घटना हुई। बंसीलाल के परिवार ने वाहन चालक के खिलाफ दावा दायर किया। दावा न्यायाधिकरण ने चार सितंबर 2017 को अपने आदेश में बीमा कंपनी को दावेदारों को 30,88,172 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।

इससे खिलाफ बीमा कंपनी हाईकोर्ट पहुंची।

उधर, बंसीलाल के परिवार ने एक अलग याचिका दायर कर मुआवजा बढ़ाने की भी मांग की। बीमा कंपनी तर्क दिया कि जिस दुर्घटना में बंसीलाल की मृत्यु हुई थी, वह गजराज ङ्क्षसह की लापरवाही और लापरवाही से गाड़ी चलाने के कारण नहीं हुई थी। अपने तर्क के समर्थन में, बीमा कंपनी ने कहा कि पुलिस को रिपोर्ट करने में बहुत देर की गई। दुर्घटना 10 अक्टूबर, 2015 को हुई थी, जबकि प्राथमिकी 16 अक्टूबर, 2015 को लगभग छह दिनों के बाद दर्ज की गई थी।

प्राथमिकी में न तो वाहन का विवरण दिया गया और न ही उसके चालक का, जो यह दर्शाता है कि दावेदारों ने बाद में जांच अधिकारी की मिलीभगत से सिर्फ मुआवजा पाने के लिए ऐसा किया।

प्रतिवादी की दलीलों पर विचार करने और रिकार्ड को देखने के बाद हाई कोर्ट ने माना कि दावेदारों ने दुर्घटना में कार से दुर्घटना को साबित किया है। हाई कोर्ट ने मुआवजे की राशि को 30,88,172 रुपये से बढ़ाकर 41,44,974 लाख रुपये करने का भी आदेश दिया।

हाई कोर्ट ने कहा कि इस कानून के तहत मामलों से निपटने के लिए उदार दृष्टिकोण जरूरी है। मोटरवाहन अधिनियम के तहत मुआवजे के निर्धारण के लिए प्राथमिकी में विलंब को अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि प्राथमिकी अक्सर जल्दबाजी में दर्ज कराई जाती है और इसमें घटना का मिनट और सटीक विवरण नहीं हो सकता है।

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