
सुप्रीम कोर्ट ने 04 दिसंबर के अपने आदेश में मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत मृतक पीड़ित के भाइयों (प्रतिवादियों) को दिया गया मुआवजा खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह स्वीकार नहीं किया कि तीन बड़े विवाहित भाई-बहन पीड़ित की कमाई पर निर्भर होंगे। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़ित अपने भाइयों के साथ नहीं बल्कि अलग रह रहा था।
जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस संजय करोल,
“पीड़िता के भाई-बहन बड़े है और उनकी शादी अपने-अपने परिवार में हुई थी। इन परिस्थितियों में उनका पीड़ित की कमाई पर निर्भर होना संभव नहीं है, खासकर जब पीड़ित अलग रहता हो।''
इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने यह भी कहा कि इसके विपरीत साक्ष्य के अभाव में भाइयों और बहनों को आश्रित नहीं माना जाएगा, क्योंकि वे या तो स्वतंत्र होंगे और कमाएंगे या विवाहित होंगे या पिता पर निर्भर होंगे।
वर्तमान मामले में मृतक की दुर्भाग्यपूर्ण वाहन दुर्घटना में मृत्यु हो गई। इसके बाद उत्तरदाताओं ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण, मुजफ्फरनगर के समक्ष मुआवजे के लिए आवेदन दायर किया।
ट्रिब्यूनल ने उन्हें 7% प्रति वर्ष के साधारण ब्याज के साथ 30,15,540/- रुपये का मुआवजा दिया। बीमा कंपनी (अपीलकर्ता) ने इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी। हाईकोर्ट के समक्ष अपीलकर्ता ने मुख्य रूप से यह तर्क दिया कि उत्तरदाता मृतक के बड़े भाई हैं। इसलिए वे मृतक पर निर्भर नहीं थे।
हालांकि, हाईकोर्ट ट्रिब्यूनल द्वारा उद्धृत निष्कर्षों और सहायक उदाहरणों से सहमत था। इसे देखते हुए कोर्ट ने बीमा कंपनी की याचिका खारिज कर दी। इस प्रकार, वर्तमान अपील दायर की गई।
सुप्रीम कोर्ट ने उपरोक्त टिप्पणियाँ करने के अलावा, ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश पर भी आपत्ति व्यक्त की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"...ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट को तीन बड़े विवाहित भाई-बहनों को मृतक पीड़िता पर निर्भर नहीं मानना चाहिए था।"
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने विवाहित भाई-बहनों को दिया गया मुआवजा अनुचित पाया।
केस टाइटल: द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम आनंद पाल एवं अन्य, डायरी नंबर- 10672 - 2022
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सुप्रीम कोर्ट ने मृतक के बड़े भाइयों को दिया गया मोटर दुर्घटना मुआवजा रद्द किया; कहा- वे आश्रित नहीं - Live Law Hindi
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