
दिल्ली हाईकोर्ट - फोटो : एएनआई
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि अभिभावकों को नाबालिग बच्चों को मोटर वाहन चलाने की अनुमति देना न केवल अपने बच्चों के बल्कि आम नागरिकों के जीवन को भी खतरे में डालते हैं। अदालत ने यह टिप्पणी कार के पंजीकृत मालिक के खिलाफ एक बीमा कंपनी को वसूली के अधिकार देने को चुनौती देने वाली अपील को खारिज करते हुए की। कार मालिक के नाबालिग बेटे से कार दुर्घटना में 2013 में एक 42 वर्षीय व्यक्ति की मौत हो गई थी।
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने कहा कि 42 वर्षीय व्यक्ति ने केवल इसलिए अपनी जान गंवाई क्योंकि नाबालिग के पिता ने यह सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम नहीं उठाए कि उसका वाहन केवल वैध ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति ही चलाए। अदालत ने कहा, वह अपीलकर्ता के इस तरह के कृत्य को माफ नहीं कर सकती है और बीमा कंपनी पर दायित्व तय नहीं कर सकती है, जब यह स्पष्ट है कि अपीलकर्ता ने खुद बीमा पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन किया था।
नवंबर 2021 में रोहिणी में एक मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने कुमार की पत्नी और बेटी के पक्ष में 16,32,700 रुपये का मुआवजा दिया। ट्रिब्यूनल ने आदेश में यह भी कहा कि बीमा कंपनी को कानून के अनुसार उचित कार्रवाई में पंजीकृत मालिक से राशि वसूलने का अधिकार होगा। यह माना गया कि कार मालिक ने अपने नाबालिग बेटे को वाहन चलाने की अनुमति देकर बीमा पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन किया।
अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि चूंकि वाहन उसके नाबालिग बेटे द्वारा उसकी जानकारी और अनुमति के बिना चलाया गया था इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि उसने जानबूझकर बीमा पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन किया था। उन्होंने कहा कि दुर्घटना के समय वह अपने कार्यालय में था और उनके नाबालिग बेटे ने उनके दराज से कार की चाबी ले ली थी जो अनजाने में प्रासंगिक समय पर बंद नहीं थी।
एमएसीटी द्वारा पारित निर्णय का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि उसके नाबालिग बेटे ने उसकी अनुमति के बिना कार ली थी, यह अपीलकर्ता कार के पंजीकृत मालिक द्वारा संबंधित पुलिस प्राधिकरण या किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष नहीं उठाई गई थी।
Delhi : दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- नाबालिगों को गाड़ी देना बच्चों संग नागरिकों का जीवन भी खतरे में डालना - अमर उजाला
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